Electric Current - Current, Ampiear ,Ohm Law ,Charge
धारा का परिमाण | युक्ति |
---|---|
1 mA | मानव को इसका आभास हो पाता है। |
10 mA | प्रकाश उत्सर्जक डायोड |
100 mA | विद्युत का झटका |
1 A | बल्ब |
10 A | 2000 W का हीटर |
100 A | मोटरगाड़ियों का स्टार्टर मोटर |
1 kA | रेलगाड़ियों की मोटर |
10 kA | ऋणात्मक तड़ित[1] |
100 kA | धनात्मक तड़ित[1 |
किसी सतह से जाते हुए, जैसे किसी तांबे के चालक के खंड से विद्युत धारा की मात्रा (एम्पीयर में मापी गई) को परिभाषित किया जा सकता है :- विद्युत आवेश की मात्रा जो उस सतह से उतने समय में गुजरी हो। यदि किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ काट से Q कूलम्ब का आवेश t समय में निकला; तो औसत धारा
{displaystyle I={frac {Q}{t}}}
मापन का समय t को शून्य (rending to zero) बनाकर, हमें तत्क्षण धारा i(t) मिलती है :
{displaystyle i(t)={frac {dQ}{dt}}}
I = Q / t (यदि धारा समय के साथ अपरिवर्ती हो)
एम्पीयर, जो की विद्युत धारा की SI इकाई है। परिपथों की विद्युत धारा मापने के लिए जिस यंत्र का उपयोग करते हैं उसे एमीटर कहते हैं।
एम्पीयर परिभाषा: किसी विद्युत परिपथ में 1 कूलॉम आवेश 1 सेकण्ड में प्रवाहित होता है तो उस परिपथ में विद्युत धारा का मान 1 एम्पीयर है।
उदाहरण
किसी तार में 10 सेकण्ड में 50 कूलॉम आवेश प्रवाहित होता है तो उस तार में प्रवाहित विद्युत धारा का मान 50 कूलॉम / 10 सेकण्ड = 5 एम्पीयर
धारा घनत्व=
इकाई क्षेत्रफल से प्रवाहित होने वाली धारा की मात्रा को धारा घनत्व (करेंट डेन्सिटी) कहते हैं। इससे J से प्रदर्शित करते हैं।
यदि किसी चालक से I धारा प्रवाहित हो रही है और धारा के प्रवाह के लम्बवत उस चालक का क्षेत्रफल A हो तो,
धारा घनत्व
{displaystyle J={frac {I}{A}}}
इसकी इकाई एम्पीयर / वर्ग मीटर होती है।
यहाँ यह मान लिया गया है कि धारा घनत्व, चालक के पूरे अनुप्रस्थ क्षेत्रफल पर एक समान है। किन्तु अधिकांश स्थितियों में ऐसा नहीं होता है। उदाहरण के लिये जब ही चालक से बहुत अधिक आवृति की प्रत्यावर्ती धारा (जैसे १ मेगा हर्ट्स की प्रत्यावर्ती धारा) प्रवाहित होती है तो उसके बाहरी सतक के पास धारा घनत्व अधिक होता है तथा ज्यों-ज्यों सतह से भीतर केन्द्र की ओर जाते हैं, धारा घनत्व कम होता जाता है। इसी कारण अधिक आवृति की धारा के लिये मोटे चालक बनाने के बजाय बहुत ही कम मोटाइ के तार बनाये जाते हैं। इससे तार में नम्यता (फ्लेक्सिबिलिटी) भी आती है।
जर्मन भौतिकविद् एवं तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉर्ज साइमन ओम ने सन् 1827 में यह नियम प्रतिपादित किया था।
ओम के नियम (Ohm's Law) के अनुसार यदि ताप आदि भौतिक अवस्थायें नियत रखीं जाए तो किसी प्रतिरोधक (या, अन्य ओमीय युक्ति) के सिरों के बीच उत्पन्न विभवान्तर उससे प्रवाहित धारा के समानुपाती होता है।
अर्थात्
V ∝ I
या,
{displaystyle V=R,I}
या,
{displaystyle R={frac {V}{I}}=mathrm {const.} }
R, को युक्ति का प्रतिरोध कहा जाता है। इसका एक मात्रक ओम (ohm) है।
वास्तव में 'ओम का नियम' कोई नियम नहीं है बल्कि यह ऐसी वस्तुओं के 'प्रतिरोध' को परिभाषित करता है जिनको अब 'ओमीय प्रतिरोध' कहते हैं। दूसरे शब्दों में यह उन वस्तुओं के उस गुण को रेखांकित करता है जिनका V-I वैशिष्ट्य एक सरल रेखा होती है। ज्ञातव्य है कि वैद्युत अभियांत्रिकी एवं इलेक्ट्रानिक्स में प्रयुक्त बहुत सी युक्तियाँ ओम के नियम का पालन नहीं करती हैं। ऐसी युक्तियों को अनओमीय युक्तियाँ कहते हैं। उदाहरण के लिये, डायोड एक अनओमीय युक्ति है।
विद्युत आवेश = कुछ उपपरमाणवीय कणों में एक मूल गुण है जो विद्युतचुम्बकत्व का महत्व है। आवेशित पदार्थ को विद्युत क्षेत्र का असर पड़ता है और वह ख़ुद एक विद्युत क्षेत्र का स्रोत हो सकता है।
आवेश पदार्थ का एक गुण है! पदार्थो को आपस में रगड़ दिया जाये तो उनमें परस्पर इलेक्ट्रोनों के आदान प्रदान के फलस्वरूप आकर्षण का गुण आ जाता है
इसकी खोज 600 ई . पूर्व हुई थी इसका श्रेय ग्रीस देश के निवासी थेल्स को जाता है 'इलेक्ट्रिसिटी' शब्द भी ग्रीस भाषा के शब्द इलेक्ट्रान से लिया गया है जिसका अर्थ 'ऐम्बर' है।
प्रकार=
आवेश को ऋणआत्मक तथा धनात्मक को बेंजामिन फ्रेंकलिन ने बताया था
एम्पीयर, लघु रूप में amp, (चिन्ह: A) विद्युत धारा, या विद्युत आवेश की मात्रा प्रति सैकण्ड; की इकाई है। एम्पीयर SI मूल इकाई है और इसका नाम विद्युतचुम्बकत्व को खोजने वाले वैज्ञानिक आंद्रे-मैरी एम्पीयर के नाम पर्रखा गया है
परिभाषा
एम्पीयर वह स्थिर धारा है, जिसे यदि दो असीमित लम्बाई के समानांतर चालकों में रखा जाये, जिनका नगण्य अनुप्रस्थ क्षेत्रफ़ल हो और निर्वात में एक मीटर की दूरी पर स्थित हों; तो इन चालकों में 2×10–7 न्यूटन प्रति मीटर का बल उत्पन्न करे।.[1] एम्पीयर SI मूल इकाई है, जैसे कि मीटर, कैल्विन, सैकण्ड, मोल, कैण्डेला और किलोग्राम। इसको विद्युत आवेश की मत्रा के सन्दर्भ के बिना ही परिभाशःइत किया गया है। आवेश की इकाई कूलम्ब वह व्युत्पन्न इकाई है। इसकी परिभाषा अनुसार, वह अवेश की मात्रा, जो कि एक एम्पीयर धारा द्वारा एक सैकण्ड में विस्थापित किया गया हो।
परिणामतः, विद्युत धारा, विद्युत आवेश के विस्थापन की दर को कहते हैं। एक एम्पीयर का अर्थ है एक कूलम्ब धारा प्रति सैकण्दका विस्थापन।
{displaystyle mathrm {1,A=1{frac {,C}{s}}} ,}